छत्तीसगढ़ में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा की बेजोड़ सफलता ने सबको चौंका दिया है। राज्य की 11 में से 10 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस को सिर्फ कोरबा सीट से संतोष करना पड़ा। यह तब हुआ जब जाति और आरक्षण के मुद्दों पर उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में भाजपा को नुकसान हुआ। छत्तीसगढ़ में भाजपा की सफलता के पीछे आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और धर्मांतरण का मुद्दा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
जातिगत समीकरण का असफल दांव
छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही जातिगत आधार पर टिकट बांटे थे। विभिन्न सीटों पर ओबीसी, एससी, और सामान्य उम्मीदवारों के बीच मुकाबला था। कांग्रेस ने जातिगत समीकरण का दांव खेलते हुए अच्छे उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, लेकिन वोटरों ने इस दांव को खारिज कर दिया। खासकर, कांग्रेस के लिए यह रणनीति पूरी तरह से फेल साबित हुई।
राजनांदगांव ओबीसी सीट पर कांग्रेस ने अपने सबसे बड़े चेहरे भूपेश बघेल को उतारा, लेकिन वे भाजपा के संतोष पांडेय से हार गए। बिलासपुर सीट पर भी कांग्रेस की उम्मीदें धराशायी हो गईं।
विष्णुदेव साय की भूमिका
भाजपा की इस सफलता के पीछे आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की महत्वपूर्ण भूमिका रही। आदिवासी मुख्यमंत्री के चलते आदिवासी वर्ग का स्वाभाविक समर्थन भाजपा के पक्ष में गया। विष्णुदेव साय ने चुनाव प्रचार में जी जान से मेहनत की और पूरे प्रदेश में मोर्चा संभाले रखा।
धर्मांतरण का मुद्दा
धर्मांतरण के मुद्दे ने भी चुनाव परिणामों को प्रभावित किया। छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण की समस्या को रोकने के लिए आदिवासी समुदाय का मानना था कि भाजपा ही इसे रोक सकती है। इसलिए, संविधान बदलने और आरक्षण समाप्त करने के फैलाए गए भ्रम का कोई असर नहीं हुआ।
छत्तीसगढ़ में भाजपा की सफलता का मुख्य कारण जातिगत समीकरण की विफलता, आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की मेहनत और धर्मांतरण का मुद्दा रहा। इन सबने मिलकर भाजपा को एक मजबूत स्थिति में ला दिया, जिससे उन्होंने 11 में से 10 सीटें जीत लीं। कांग्रेस के जातिगत दांव और अच्छे उम्मीदवार भी वोटरों को प्रभावित नहीं कर पाए, जिससे उन्हें मात्र एक सीट से संतोष करना पड़ा।